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जाकिर खान पोएट्री -मेरे कुछ सवाल है जो सिर्फ क़यामत के रोज पूछूगा तुमसे zakir khan all shayari !!

आज हम जाकिर खान पोएट्री में उनकी "उसे अच्छा नहीं लगता",mere kuch sawal hai jo qayamat lyrics और zakir khan shayari titli पढेगे इस पोस्ट में !!
मेरे कुछ सवाल है जो सिर्फ क़यामत के रोज पूछूगा तुमसे उससे पहले तेरी मेरी बात हो सके इस लायक़ नही हो तुम

इंदोर में जन्मे जाकिर खान बहुत ही कम समय में युवाओं के दिलो दिमाग में अपनी कॉमेडी और शायरी से जितनी तेजी से चढ़े है उतना शायद ही किसी और इतना तेजी से कर पाया हो आज हमzakir khan shayari में क्या क्या है खास उस पर डाले गे एक नजर
"Zakir Khan is an Indian stand-up comedian, writer and presenter. In 2012, he rose to popularity by winning Comedy Central's India's Best Stand Up Comedian competition"

mere kuch sawal hai zakir khan poem

mere kuch sawal hai jo qayamat zakir khan





Mere Kuch Sawal Hai (Original) by Zakir Khan at Jashn-e-rekhta 2017





zakir khan shayari kayamat


Mere kuch sawal hain jo sirf kayamat k roz puchunga tumse,
kyunki usse pehle tumhari meri bat ho, is layak nahi ho tum
Main janna chahta hu k rakib se sath yuhi chalte hu bekhayali me hath takra jata hai tumhara?
Kya apni ungliyon se uska hath tham liya karte ho.. kya waise hi jaise mera tham liya karti thi?
Kya bta di bachpan ki sari kahaniya tumne usko? jo rat rat bhar baith kr sunai thi tumne mujhe?
Kya dudh wali maggi banana tumne sikha diya usko?
Ye kuch sawal hain mere jo sirf kayamat k roz puchunga tumse,kyunki usse pehle tumhari meri bat ho, is layak nahi ho tum.
Main puchna chahta hu, k kya usko bhi seene se laga k matha chumti ho tum?
jaise mera chuma karti thi?
Kya harf me uske liye bhi dua likhti ho tum? Jaise mere liye likha karti thi?
sard raton me, band kamre me, tumari nagi peeth par harf dar harf Maine jo nam ungliyon se likhte the aur tum nam ko pahcana karti thi.
Kya ab abhi tu yahi karti ho us k sath.
Ye kuch sawal hain mere jo sirf kayamat k roz puchunga tumse,kyunki usse pehle tumhari meri bat ho, is layak nahi ho tum


zakir khan shayari titli



वो तितली की तरह आई और ज़िन्दगी को बाग़ कर गयी,वो तितली की तरह आई और ज़िन्दगी को बाग़ कर गयी,मेरे जितने नापाक थे इरादे उन्हें भी पाक कर गयी!





उसे अच्छा नहीं लगता है |  Zakir Khan recites Usse Acha Nahi Lagta at Rekta Poetry Session




jis guldaan ko tum ajj apna kehte ho, uska phool ek din hamara bhi tha,
Who jo ab tum uske mukthaar ho toh sun lo,
usse acha nahi lagta,
meri jaan ke haqdaar ho to sun lo,
usse acha nahi lagta!
usse acha nahi lagta,
meri jaan ke haqdaar ho to sun lo,
usse acha nahi lagta,
Ki who jo zulf bikhere toh bikhiri na samjhna,
agar mathe pe aa jaaye toh befikri na samjhna,
darasal usee aise he pasand hai,
Uski Azaadi, Uski Khuli Zulfon meh band hai!
Jante Ho,
Jante Ho who agar hazar baar julfein na sware toh uska guzara nahi hota,
Waise dil bohot saaf hai uska inn harkaton mein koi ishara nahi hota.
Khuda Ke waste, Khuda ke waste use kabhi rok na dena,
Uski azaadi se usee kabhi tok na dena,
ab meh nahi tum uske dildaar ho toh sun lo,
Usse acha nahi lagta!!

Who jo ab tum uske mukthaar ho toh sun lo,


 


जाकिर खान पोएट्री  
उसे अच्छा नहीं लगता



जिस  गुलदान  को  तुम  आज   अपना  केहते  हो , उसका फूल  एक  दिन  हमारा  भी  था ,
वो  जो  अब  तुम  उसके  मुक्तार  हो  तो   सून  लो ,
उसे अच्छा  नही लगता ,
मेरी  जान  के  हक़दार  हो  तो  सुन  लो ,
उसे  अच्छा  नहीं  लगता !
वो   जो  अब  तुम  उसके  मुख्तार  हो  तो  सुन  लो ,
उसे  अच्छा नहीं  लगता ,




मेरी  जान  के  हक़दार  हो  तो  सुन  लो ,
उसे  अच्छा  नहीं  लगता ,
की  वो  जो  ज़ुल्फ़  बिखेरे  तो  बिख़िरी  ना  समझना ,
अगर  माथे  पे  आ  जाए  तोह  बेफिक्रि  ना  समझना ,
दरअसल  उसे  ऐसे  ही पसंद  है ,
उसकी  आज़ादी , उसकी  खुली  ज़ुल्फ़ों  में  बंद  है !
जानते  हो ,
जानते  हो  वो  अगर  हज़ार  बार  जुल्फें  ना  सवारे  तोह  उसका   गुज़ारा  नहीं  होता ,
वैसे  दिल  बोहोत  साफ़  है  उसका  इन्  हरकतों  में  कोई  इशारा  नहीं  होता .
खुदा  के  वास्ते , खुदा  के  वास्ते  उसे  कभी  रोक  ना  देना ,
उसकी  आज़ादी  से  उसी  कभी  टोक  ना  देना ,
अब  मैं  नहीं   तुम  उसके  दिलदार  हो  तोह  सुन  लो ,
उसे   अच्छा  नहीं  लगता.!!



Jashn e Rekhta 2017- Zakir Khan original poem recital

वीडियो यहाँ देखे




zakir khan shayari shunya

मैं शुन्य पर सवार हूँ ,
मैं शुन्य पर सवार हूँ ,
बे अदब सा मैं खूमार हूँ,
अब मुश्किलो से क्या डरु,
मैं ख़ुद केहर हज़ार हूँ ,
 मैं शुन्य पर सवार हूँ। 

यह ऊँच नीच से परे ,
मजाल आँख में भरे ,
मैं लढ़ पढ़ा हूँ रात से ,
मशाल हाँथ में लिए ,
ना सूर्ये मेरे सात है 
तो क्या नई यह बात हैं 
वह शाम को है ढल गया 
वह रात से था डर गया  
मैं जुगनुओं का यार हूँ ,
मैं शुन्य पर सवार हूँ। 

भावनाएँ है मर चुकी,
सामवेदनाए हैं ख़त्म हो चुकि,
अब दर्द  से क्या डरूँ,
यह जिंदगी ही ज़ख़्म है ,
मैं रहती मात हूँ ,
मैं बेजान स्याह रात हूँ,
मैं काली का श्रृंगार हूँ
मैं शुन्य पर सवार हूँ। 
मैं शुन्य पर सवार हूँ।

हूँ राम का सा तेज मैं,
लंका पति सा ज्ञान हूँ ,
किसकी करू मैं आराधना ,
सबसे जो मैं महान हूँ ,
ब्राह्मण का मैं सार हूँ ,
मैं जल प्रवाह निहार हूँ,
मैं शुन्य पर सवार हूँ। 

मैं शुन्य पर सवार हूँ।  

उम्मीद करते है ये आपको पसंद आयी होगी जाकिर खान की कोई पोएम अगर आप और पढना चाहते है जो यहाँ नही है तो हमे कमेंट कर बताये !
धन्यवाद !

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